> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : तीन क्षणिकाएँ

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

तीन क्षणिकाएँ



मैं उनके नाम की माला जपता रहा
उन्होंने घर को ही आग लगा दी
परमात्मा में जब आत्मा मिल गयी
उन्होंने मेरी राख यमुना में बहा दी |

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चींटे को बार बार दूर करता हूँ
फिर भी वह मेरे पास आता है
बेवफा इंसानों से तो अच्छा है
उससे शायद कोई पुराना नाता है |

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तुम एक कलमा ही पढ़ दो
मेरी मजार पर फूल रखकर
जन्नत मिल जायेगी मुझको
या जी उठेगी रूह सुनकर |

(c) हेमंत कुमार दूबे

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