> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : मैं कवि नहीं हूँ

शनिवार, 13 जुलाई 2013

मैं कवि नहीं हूँ




मैं एक चोटिल इंसान हूँ
जिसके बहते लहू की धार
बन जाती है कविता
जिसकी करुण चीत्कार
मन वीणा को झंकृत कर देती
बन जाता है संगीत

दर्द को जब होठों पर लाता हूँ
दिल उनके, जो मेरे अपने हैं
मेरी पीड़ा को जो समझते हैं
सर्द हो जाते हैं
बरबस मुझे कवि कहते हैं
क्योंकि वे समझते हैं
कविता मेरे लहू में बहती है
मेरी पुकार में रहती है
और वे उसे देख सकते हैं
सुन सकते हैं
पहचान सकते हैं
चोट कभी उन्होंने भी खायी है

पर मैं कवि नहीं हूँ
सिर्फ एक चोटिल इंसान हूँ
बेबस बेजान होता हुआ
जिसके घावों को कुरेदने के लिए
मंडरा रहे हैं नरभक्षी

मत पढ़ो मेरे लहू को
थाम लो मेरा हाथ
दे दो थोड़ा साथ
पहुँचा दो उस वैद्य के पास
जो जानता हो मेरा इलाज
रोक ले मेरा बहता लहू
 
मैं एक राही हूँ
मंजिल पहुँचने तक
जीना चाहता हूँ
सुनो, सुनो
मैं कवि नहीं हूँ |

 
© हेमंत कुमार दूबे

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