> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : प्यार है तुमसे कैसे समझाऊं

रविवार, 31 मार्च 2013

प्यार है तुमसे कैसे समझाऊं


 
प्रिये, काँटों भरा प्रेम पंथ है
फिर भी मैं चलता ही जाऊं
हर पल तेरी याद सताये
निर्झर नीर नैनों से बहाऊं

मीलों की दूरी कैसे मिटाऊं
विरह वेदना कैसे दिखलाऊं
तुझ संग प्रीत लगाई प्रीतम
कब और क्यों कैसे बतलाऊं

जब हर न पाऊं पथ बाधा को
क्यों जोर से नहीं चिल्लाऊं
चोट लगी जब दिल पर मेरे
तुझे हाल कैसे न बताऊं

आग लगी जीवन नदिया में
किस पानी से इसे बुझाऊं
तपन मेरी महसूस न तुमको
कैसे मैं शीतल बन जाऊं

तेरा हर दुःख मेरा है प्रीतम
प्यार है तुमसे कैसे समझाऊं
जीना मरना है अब तेरे लिए
किस तरह से तुम्हें बताऊं |


(c)  हेमंत कुमार दुबे

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