> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : कैसे तुमसे नैन मिलाऊँ...

रविवार, 27 जनवरी 2013

कैसे तुमसे नैन मिलाऊँ...



दिल में जो तुम बसती हो
खिलखिला कर हँसती हो
साँसे चुपके से कहती हैं
कैसे उनको चुप कराऊँ....

रात के नीरव अंधियारे में
तुम्हें ढूँढने हाथ बढ़ाऊँ
चिहुँक अकेले में डरकर
नैनों से जल बरसाऊँ...

रात जागते कब मैं सोया
रोज प्रात मैं समझ न पाऊँ
याद तुम्हारी तकियों पर
अपने हाथों कैसे मिटाऊँ ...

सबसे छुपाऊं
कुछ न बताऊँ
शर्माता सकुचाता हूँ मैं
कैसे तुमसे नैन मिलाऊँ...

(c) हेमंत कुमार दुबे

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