> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : अद्वितीय मिलन

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

अद्वितीय मिलन

तुमको जो बिठाया मन-मंदिर में,
जलाया दीप वर्षों तक यादों का,
लौ में ख्वाहिशें सब खाक हो गयी हैं,
नहीं इन्तजार अब तुमसे मिलन का|

नैनों को जाने क्या हो गया है,
तुम्हारी मूरत दिखती है हरपल,
दूर नहीं पल भर के लिए भी,
मेरी रूह तुम्हारी रूह में है शामिल|

(c) हेमंत कुमार दुबे

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